शिक्षा-व्यवसाय

प्रेरणादायक सच्ची कहानियां – वो पांच महिलाएं जिन्होंने जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियों को हरा दिया

पांच महिलाओं की प्रेरणादायक सच्ची कहानियां, भी प्रेरणा से भर देंगी जो आपको

सखियों मोना गुरु का हमेशा से प्रयास रहा है की अपने पाठको के लिए ऐसी जानकारी लाई जाए जो अपने आप में एक मिसाल तो हो ही साथ ही वो कई लोगो को प्रेरित भी कर सके और उनके जीवन में एक सकारात्मक बदलाव भी ला सके, इसी कड़ी में आज मोना गुरु आपके लिए पांच ऐसी महिलाओं की प्रेरणादायक सच्ची कहानियां लेकर आई है जिन्होंने जीवन की मुश्किल से मुश्किल चुनोतियों का सामना करते हुए भी विजय पाई और आज वो समाज के लिए किसी नायिका से कम नही है ।

1. जेसिका कॉक्स (Jessica Cocks)

जेसिका कॉक्स - Jessica Cox

हाथों से नहीं, पैरों से हवा में उड़ान भरती हैं जेसिका- अमेरिका के एरिज़ोना में जन्मी और वहीं रहने वाली जेसिका कोक्स (32) जन्म से अपंग हैं। उनके दोनों हाथ नहीं थे, इसके बावजूद वह पायलट है। बिना हाथों वाली वह दुनिया की पहली पायलट है, जो हाथों से नहीं, पैरों से प्लेन उड़ाती हैं।लेकिन यह कमजोरी ही उनकी ताकत बनी। आज जेसिका वो सभी काम कर सकती हैं और करती हैं, जो आम लोग भी नहीं कर पाते। उनके पास ‘नो रिस्टिक्शन’ ड्राइविंग लाइसेंस है। जिस विमान को जेसिका उड़ाती है उसका नाम ‘एरकूप’ है। जेसिका के पास 89 घंटे विमान उड़ाने का एक्सपीरियंस है।

जेसिका डांसर भी रह चुकी हैं और ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट भी हैं। वे 25 शब्द प्रति मिनट से टाइपिंग भी कर सकती हैं। जेसिका पर एक डॉक्युमेंट्री भी बन चुकी हैं ‘राइट फुटेड’ जिसे डायरेक्ट किया है एमी अवॉर्ड विनर ‘निक स्पार्क’ ने।

कुछ और तस्वीरे देखिये जेसिका कॉक्स की

जेसिका अपने विमान में

2. स्मीनू जिंदल (Sminu Jindal)

11 साल में खोए थे पैर, आज अपनी कंपनी की MD हैं स्मीनू जिंदल- जिंदल फैमिली की स्मीनू उन दिव्यांगों के लिए आदर्श हैं जो जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहते हैं। स्मीनू ने अपनी विकलांगता को अवसर माना और अपनी ऐसी पहचान बनाई कि आज उनकी व्हीलचेयर खुद को लाचार समझती है।आज स्मीनू जिंदल ग्रुप की कंपनी जिंदल सॉ लिमिटेड की एमडी हैं। उनका ‘स्वयं’ एनजीओ भी है। स्मीनू जब 11 साल की थीं, तब जयपुर के महारानी गायत्री देवी स्कूल में पढ़ती थीं। छुट्टियों में दिल्ली वापस आ रही थीं, तभी कार एक्सीडेंट हुआ और वह गंभीर स्पाइनल इंजरी की शिकार हो गई। हादसे के बाद उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया और व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा।

स्मीनू बताती हैं, अपने रिहैबिलिटेशन के बाद जब मैं इंडिया वापस आई तो काफी कुछ बदल चुका था। मैंने मायूस होकर पिताजी से कहा था कि मैं स्कूल नहीं जाऊंगी, पर पिताजी ने जोर देकर मुझसे कहा कि तुम्हें अपने बहनों की तरह ही स्कूल जाना पड़ेगा। आज मेरे पति और बच्चों के लिए भी मेरी विकलांगता कोई मायने नहीं रखती।

स्मीनू कहती है- ‘आपको आपका काम स्पेशल बनाता है न कि आपकी स्पेशल कंडीशन। मेरे जैसे जो भी लोग हैं, उन्हें यही कहूंगी- खुद की अलग पहचान बनाने के लिए अपनी कमी को आड़े न आने दें, यही कमी आगे चलकर आपकी बड़ी खासियत बन जाएगी।”

स्मीनू का एनजीओ ‘स्वयं’ आज NDMC, ASI, DTC और दिल्ली शिक्षा विभाग के साथ मिलकर कई काम कर रहा है।

प्रेरणादायक सच्ची कहानियां – कुछ और तस्वीरे स्मीनू की

स्मीनू जिंदल

3. ली जुहोंग (Li Zhong)

बचपन में पैर खोए, फिर भी डॉक्टर बनीं, अब इलाज करने रोज करती है पहाड़ पार- चीन के चांगक्वींग की रहने वाली ली जुहोंग जब 4 साल की थीं तो एक रोड एक्सीडेंट दोनों पैर गंवाने पड़े। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। पढ़ाई पूरी की और डॉक्टर बन कर आज पहाड़ी गांव में क्लीनिक खोलकर लोगों की सेवा कर रही है।-1983 में एक ट्रक ने ली को टक्कर मार दी। दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए थे।

– डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर जूहोंग के दोनों पैर घुटने के ऊपर से काट दिए।

– ठीक होने के बाद होंगजू ने लकड़ी के स्टूल के सहारे चलना सीखा। शुरुआत में उन्हें लगा कि वह चल नहीं पाएंगी।

– आठ साल की उम्र में चलना सीख लिया। इसके बाद फिर से स्कूल जाना शुरू किया।

– 2000 में स्पेशल वोकेशनल स्कूल में मेडिकल स्टडी के लिए एडमिशन लिया और डिग्री हासिल की।

– इसके बाद गांव वालडियन में क्लीनिक खोलकर ग्रामीणों का इलाज शुरू किया।

– जुहोंग इमरजेंसी कॉल आने पर मरीज को घर पर भी देखने जाती हैं। उन्हें अक्सर ऊंचे-नीचे रास्तों से जाना होता है।

क्लीनिक खोलने के कुछ दिनों बाद ही होंगजू की शिंजियान से मुलाकात हुई। दोनों में प्यार हुआ और फिर शादी कर ली। शिंजियान ने नौकरी छोड़कर घर की पूरी जिम्मेदारी संभाली। शिंजियान पीठ पर बैठाकर जुहोंग को क्लीनिक तक छोड़ने जाते हैं। ली अब तक 1000 से अधिक लोगों का इलाज कर चुकी हैं।

4. मुस्कान अहिरवार (Muskan Ahirwar)

9 साल की बच्ची गरीब बच्चों के लिए चलाती है लाइब्रेरी- भोपाल में एक 9 साल की बच्ची मुस्कान अहिरवार गरीब बच्चों के लिए ‘बाल पुस्तकालय’ नाम से एक लाइब्रेरी चलाती है। तीसरी क्लास में पढ़ने वाली मुस्कान के पास फिलहाल 119 किताबें हैं। मुस्कान रोज़ाना इस लाइब्रेरी में बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती है।भोपाल के अरेरा हिल्स के पास बने स्लम एरिया में रहने वाली मुस्कान की मां हाउस वाइफ हैं और पिता बढ़ई। मुस्कान की बड़ी बहन 7वीं में पढ़ती है। लाइब्रेरी के लिए मुस्कान हर दिन 4 बजे शाम में स्कूल से घर आती है फिर उसके बाद अपने घर के बाहर किताबें सजाती हैं और कहानियां सुनाकर बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

सरकार से मिली मदद

पिछले साल राज्य शिक्षा केंद्र ने उसे 25 किताबें दी थी। इन किताबों की संख्या अब बढ़कर 119 हो गई है। राज्य शिक्षा केंद्र ने अब उसे यह लाइब्रेरी संभालने की जिम्मेदारी दी है। अब मुस्कान और स्लम के बच्चे शिक्षा केंद्र से और किताबों की मांग करने जा रहे हैं, क्योंकि अब तक की सभी किताबें बच्चे पढ़ चुके हैं। शायद मुस्कान भारत की सबसे कम उम्र की लाइब्रेरियन है।

प्रेरणादायक सच्ची कहानियां – कुछ और तस्वीरे मुस्कान की

5. रेखा (Rekha)

खेतों में हल चलाकर इस महिला ने बना दिया रिकॉर्ड- पति की असमय मौत के बाद मुरैना जिले में पहाड़गढ़ के पास गांव जलालपुरा की एक महिला ने खेत में खुद हल चलाकर नेशनल रिकॉर्ड बना दिया। उसे समाज के लोग विधवा कहकर घर पर बैठने की हिदायत दे रहे थे लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी। आज रेखा अपने खेत में आधुनिक तौर-तरीके से खेती करती हैं और पैदावार भी काफी बढ़ा ली।- महज 1 हेक्टेयर के खेत में 50 क्विंटल बाजरा पैदा कर नया रिकॉर्ड बनाया, क्योंकि अब तक नेशनल एवरेज 15 क्विंटल था।

– रेखा की इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कृषि-कर्मण अवॉर्ड के लिए सम्मानित किया है।

– पति की जब मौत हुई तो समाज ने रेखा को विधवा कह कर घर बैठने की हिदायत दी थी। कंधों पर दो बेटियों और एक बेटे की जिम्मेदारी थी और गुजारे के नाम पर महज 1 हेक्टेयर का खेत। इसी के सहारे परिवार पालना था।

– खुद अपनी खेती को संभालने बाहर निकली तो रेखा को समाज से भी जंग लड़नी पड़ी।

– समाज के असहयोग के चलते कई बार तो गृहस्थी के काम के साथ खुद रेखा को खेतों में हल भी चलाना पड़ा। आखिरकार रेखा की जिद कामयाब हो गई है, अब गांव के लोग भी रेखा पर गर्व कर रहे हैं।

तो मित्रों ये थी उन पांच महिलाओं की सच्ची कहानी जिन्होंने जीवन की कठिनतम चुनौती का सामना करते हुए भी उस पर विजय पाई और अपने देश और समाज की सच्ची नाइका के रूप में स्थापित हुई, मित्रों आपको अगर मोना गुरु का ये आर्टिकल अच्छा लगा हो तो आप इसे फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अपने मित्रों के साथ शेयर भी कर सकते है.

“मोना-गुरु” हर महिला की वो आभासी (वर्चुअल) सहेली है ,जो रोजमर्रा की हर मुश्किल का आसान हल तो देती ही है साथ ही अपनी सखियों को घर-संसार से जुड़ी हर बातों में आगे भी बनाये रखती है.

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